जागृति मंच ने ईस्वर चंद्र विद्यासागर का स्मरण दिवस पर श्रद्धाअंजलि कायर्क्रम पखांजुर मे आयोजन किया।
VLC@पखांजुर. जागृति मंच ने ईस्वर चंद्र विद्यासागर का स्मरण दिवस पर श्रद्धाअंजलि कायर्क्रम पखांजुर मे आयोजन किया।शिक्षक चतुर्वेदी ने माल्यर्पण किये।उन्होंने श्रद्धाअंजलि सभा में सम्बोधित करते हुए कहां की ईस्वर चंद्र विद्यासागर समाज मे युगों से पनप रहे धर्मांधता, रूढ़िवादी सोच विचार, कुसंस्कार पर आधुनिक सोच-विचार ,तार्किकता को ही हाथियार अपनाकर आधुनिक सिद्धांत आधारित मान कर समाज के तमाम कुरीतियों पर कुठाराघात किये।जागृत मंच सचिव निबास अधिकारी ने कहां की ईस्वरचंद्र विद्यासागर भारत देश के प्रथम आधुनिक इन्सान माईकेल मधुसूदन दत्त ने बेले कि ईस्वरचंद्र वेष-भूषा एक आदर्श भारतीय पंडित की थी।परंतु उनके विचार भौतिकवादी तार्किक तथ्यों पर प्रमाणा आधारित था ।उन्होंने उस वक्त घोषणा किया था कि वेद वेदांत भ्रांत दर्शन हैं।और इस बात पर आजीवन खरे उतरे ।स्कूल कॉलेज की दहलीज पर धर्मांधता, रूढ़िवादी चिंता, कुसंस्कार को प्रवेश करने के खिलाफ रहे ।जिस धर्मशास्त्र की आर में विधवा विवाह, महिलाओं की स्कूलों में पड़ने लिखने से वंचित किया ,बहुविवाह का प्रचलन था, शिशु अवस्था मे बालविवाह कराने थे ।यह उलंघन करने वालो पर धर्मांधता ,रूढ़िवादी चिंता, कुसंस्कार के ठेकेदारों ने देश और समाज पर कब्जा करके रखे थे।उस उग्रता के ठेकेदारों के खिलाफ अकेले प्रमाणित सत्य के पक्ष में समझौता-हीन सैद्धांतिक लड़ाई लड़े ।शिक्षा का विकास एवं प्रसार के लिए विद्यालय का प्रतिष्ठा ,शिक्षक निर्मित के लिए विद्यालय ,शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक रचना ,भाषा विकसित और उन्नत करना,महिला शिक्षा का प्रसार ,गरीब छात्रों केलिए लिखने – पढ़ने में सहयोग इतने सारे कार्य तीब्र बाधि के विरुद्ध कैसे करके किया हैं।उस समय ऐसे महान शिक्षाविद एक भी नहीं था।यह तक की उनके बाद भी इस देश शिक्षा क्षेत्रों में ऐसे महान आधुनिक इन्सान देखने को नहीं मिलता हैं। किआजीवन लड़ते रहे ।आधुनिकता की विकास की उद्देश्य से ईस्वरचंद्र विद्यासागर ने कहां की” सत्य की बहुलता नही होती है।किसी भी क्षेत्र में या किसी भी घटना के बारे मे सच्चाई केवल एक ही होती हैं”। आज की स्कूली शिक्षा में पढ़ाई लिखाई और छात्रों में ज्ञान की गहराई नहीं रही जो पहले के छात्रों मे हुआ करते थे।ईस्वरचंद्र विद्यासागर ने उसके जबाब आज भी वास्तविक है। ‘ पूर्ण बाबू ‘ ने ईस्वरचंद्र विद्यासागर से सवाल ” पूछा, कि एलए, बीए ,एमए उत्तीर्ण होकर जो छात्र निकल रहे हैं, वे सभी ‘आई हैव ‘ न लिखकर’ आई हैज’ क्यों लिखते हैं? विद्यासागर ने जो उत्तर दिया था वह आज भी शिक्षाप्रद है।ईस्वरचंद्र विद्यासागर ने कहा था कि “हमारे जो लड़के हैं, हम उनसे ट्यूशन फीस लेते हैं, पंखे के लिए फीस लेते हैं, परीक्षा फीस लेते हैं। इसके बाद हम मिल – फैक्टरी का दरवाजा खोल देते हैं। हम कहते हैं कि यहां शिक्षक हैं, यहां बेंच -कुर्सी -किताबें हैं, स्याही- कलम -पेंसिल है आदि सब कुछ है। यह कह कर हम उन्हें मिल में डालकर चाबी से मिल- फैक्टरी को चला देते हैं। कुछ दिनों बाद मिल फैक्टरघ से तैयार होकर कोई सेकण्ड क्लास से, कोई एंट्रेंस से ,कोई एफए होकर ,कोई बीए होकर, कोई एमए होकर निकलता है। निकल कर सभी लिखते हैं ‘आई हैज’।ईस्वरचंद्र विद्यासागर का दूरदृष्टि को समझणा चाहिए जो हमे समज प्रगति मे दायित्व ग्रहण करने कि वे आज भी सिख दे रहे है।जागृत मंच उपाध्यक्ष ऋषिकेश मजूमदार, सदस्य प्रदिप मण्डल, सुजित कर्मकार, प्रेमानन्द मणल, सुकांट मजूमदार, चतुर्वेदी सर,ठाकुर सर,साहु सर,गुंजन, आरध्या ,आदि ने माला एवं फुल अर्पण कर श्रद्धांजलि दिया है।
पखांजूर से बिप्लब कुंडू