विकास कार्य में अड़ंगा क्यों

VLC@राजनांदगांव. संस्कारधानी का जिक्र आते ही मानस पटल पर साहित्यकारों, गीतकारो, संगीतकारों और खेल प्रतिभाओं की छवि अनायास ही मस्तिष्क पर उभर कर आती है। लेकिन शहर में स्थित त्रिवेणी परिसर में आज भी साहित्यकारों की अतुलनीय धरोहर एकाग्र चित्त होकर अपने सुरक्षा के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रही है जो उनकी पुछ परख कर सकें। ऐसे में एक जो वर्तमान में राजगामी संपदा न्यास के उच्च पदेन पर स्थापित है।वही.. वो एक कलाकार भी जो मूल रूप से नई दिशा देने के उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रहा है।ऐसे उस पर आपसी तंज का हलफनामा बनाकर किसी अनुकरणीय कार्य करने से पहले ही विकलांगता की बैसाखी पकड़ा देना कहाँ तक सही है।यह मेरे समझ से परे है। इन परिस्थितियों में क्या विकास की दिशा में अन्य कार्य हो पाएंगे, चाहे वह सांस्कृतिक क्षेत्र हो या कलाकारों के हित में हो। क्या-? ऐसे हालात में यह संभव हो पाएगा। यह समय चक्र ही बताएगा।

सृजन-संवाद पर पैनी नज़र….

विगत कई वर्षों से रानी सागर में स्थित सृजन-संवाद भवन जर्जर अवस्था में अपनी दुहाई दे रहा था। भवन की सुरक्षा को लेकर इस बार फिर एक कलाकार का मन इस नई पहल की दिशा में कदम बढ़ाने अग्रसर होने लगा, साथ ही साथ नगर के कलाकारों को स्थान मुहैया कराई जाए इस दिशा में पहल करने आतुर हुआ। क्योंकि विगत कई वर्षों से सृजन-संवाद भवन के बदबूदार कमरे, टॉयलेट और बरामदा फिर चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ वर्तमान में आल्हादित होने लगा है। यह व्यवस्था कलम कारों से क्यों नजरअंदाज हो जाती है ,यह समझ से परे है…

सार्थक पहल के साथ आगे बढ़े….

वर्तमान परिस्थिति और हालात के साथ लगातार सुर्खियों में रहना हर आदमी का सपना होता है। लेकिन-? सुर्खियां तब तक सार्थक होती है जब तक हम सार्थकता का अमलीजामा ना पहन ले, क्योंकि आज भी त्रिवेणी परिसर के प्रांगण में रोजाना शराबखोरों,गंजेडीयों और जुआरियों का एक कुनबा प्रायः प्रतिदिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। वह तो भला हो राजधानी संपदा न्यास के अध्यक्ष विवेक वासनिक का जिन्होंने अपने कुशल प्रबंधन से सृजन-संवाद भवन परिसर में बोरिंग खुदवाई.. जिससे भवन में अभ्यास करते शहर के युवा रंग कर्मियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था हो पा रही है। वहीं दूसरी ओर भवन के अंधेरे कोहरे से ढके कमरों में लाइट की व्यवस्था जगमगगा रही है। जिससे यहाँ अभ्यास करने वाले युवा रंगकर्मियों को खासकर लड़कियों को अंधेरे में जगमगाती लाइट के बीच सहज महसूस होता है। मेरे विचार से यह सारी पहल एक सार्थक पहल है,और इस दलित नेतृत्व को प्रोत्साहित कर उनका जन सहयोग किया जाना चाहिए।ताकि अपनों के साथ कोई अपना नित नई दिशा में विकासशील प्रयास कर आने वाले भविष्य के लिए इस कीर्तिमान स्थापित कर सके। तभी हमारी इस सार्थक पहल की सार्थकता होगी।…

रवि रंगारी की कलम से……

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Need Help? Contact Me!